वाह रे BHU! आरक्षण से NET पास करने वाले छात्रों से छीन लिया असिस्टेंट प्रोफेसर बनने का हक
विश्वविद्यालय के रजिस्ट्रार नीरज त्रिपाठी ने जवाब देने से बचते हुए अपने पीआरओ से बात करने की सलाह दी.

“मैं नेट क्वालिफाइड हूं. मैंने असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए अप्लाई किया था, लेकिन बीएचयू ने ये कहकर मुझे अयोग्य बता दिया कि मैंने एससी कैटेगरी से नेट क्वालिफाई किया है.” ये कहना है लॉ के स्टूडेंट रहे संदीप कुमार का. संदीप कहते हैं कि इससे पहले उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय में असिस्टेंस प्रोफेसर के लिए अपलाई किया था, जहां से इंटरव्यू कॉल भी आया था. लेकिन, बीएचयू ने साफ-साफ कह दिया है कि एससी कैटेगरी से नेट पास होने के कारण वे अयोग्य हैं. इसे लेकर संदीप जैसे तमाम अभ्यर्थी लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं और कोर्ट जाने की तैयारी में हैं.
बीएचयू में असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्ति में गड़बड़ी का आरोप लगाते हुए ओबीसी, एससी, एसटी कैटेगरी के उम्मीदवार लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं. इसी महीने में उन्होंने दो बार प्रदर्शन किया है. पहली बार 16 अक्टूबर को छात्रों ने होलकर भवन का घेराव कर विरोध-प्रदर्शन किया था, जिसके बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने आश्वासन दिया था कि वह विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) को पत्र लिखकर स्पष्टीकरण मांगेगी, जिसके बाद ही इंटरव्यू आयोजित की जाएगी. इस आश्वासन के बाद धरना समाप्त कर दिया गया.
आश्वासन मिलने के एक हफ़्ते तक उम्मीदवारों ने इंतजार किया, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. इस बीच सोमवार 21 अक्टूबर को फिर से साक्षात्कार शुरू कर दिया गया तो सुबह छह बजे ही अभ्यर्थी कुलपति आवास के सामने होलकर हाउस पहुंचकर धरने पर बैठ गए. विश्वविद्यालय प्रशासन पर वादाख़िलाफ़ी का आरोप लगाते हुए छात्रों ने यूजीसी का जवाब आने तक साक्षात्कार और नियुक्ति की प्रक्रिया पर रोक लगाने की मांग की.
पिछले कुछ महीनों से बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में छात्रों का विद्रोह लगातार सामने आ रहा है. पिछले महीने जन्तु विज्ञान विभाग के प्रोफेसर एसके चौबे के निष्कासन का छात्रों ने जमकर विरोध किया था. इसके बाद लाइब्रेरी और सभी विभागों में शौचालय समेत 11 सूत्री मांगों को लेकर कुछ विद्यार्थियों ने भूख हड़ताल की थी. इन सभी प्रदर्शनों का शोर थमा भी नहीं था कि एक बार फिर छात्र और बीएचयू प्रशासन आमने-सामने हैं.
छात्रों ने लगाया नियम के खिलाफ काम करने का आरोप
असिस्टेंट प्रोफेसर के साक्षात्कार में धांधली के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में शामिल उम्मीदवार चन्दन सागर का कहना है, “असिस्टेंट प्रोफेसर की नियुक्ति में नेट परीक्षा उतीर्ण होना अनिवार्य है. जबकि परफॉर्मिंग आर्ट्स संकाय में होने वाली नियुक्तियों के लिए साक्षात्कार के लिए जो सूची बनाई गई है, उसमें कई उम्मीदवारों को इस आधार पर अयोग्य कर दिया गया गया है कि उन्होंने आरक्षित श्रेणी (ओबीसी,एससी,एसटी) में नेट क्वालिफाई किया है. जबकि यूजीसी का ऐसा कोई नियम नहीं है. यूजीसी के नियमों के अनुसार केवल नेट योग्यता होनी चाहिए. विश्वविद्यालय प्रशासन का यह कदम असंवैधानिक है.”
प्रदर्शन में शामिल एससी-एसटी, ओबीसी संघर्ष समिति के अध्यक्ष राहुल यादव का कहना है, “बीएचयू का आरक्षण विरोधी रवैया पूरी तरह असंवैधानिक है. यह कदम मानव संसाधन विकास मंत्रालय और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के आदेशों के विरूद्ध है. यूजीसी द्वारा जारी दिशा-निर्देशों में असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए केवल नेट (NET) की पात्रता होना अनिवार्य है. कोई भी अभ्यर्थी इसलिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता, क्योंकि उसने अपनी कैटेगरी में नेट किया है.”
बीएचयू की छात्रा नीलांशी गौतम विश्वविद्यालय पर वादाख़िलाफ़ी का आरोप लगाती हैं. वे कहती हैं, “इससे पहले हम इसलिए बीएचयू प्रशासन की बात माने थे, क्योंकि हमसे कहा गया था कि तब तक साक्षात्कार नहीं होगा जब तक यूजीसी से लेटर जारी नहीं किया जाएगा, लेकिन यूजीसी से बिना कोई जवाब आए बीएचयू प्रशासन साक्षात्कार कर रहा है.”
असिस्टेंट प्रोफेसर के लिए अप्लाई करने वाली एक छात्रा प्रियंका यादव कहती हैं कि हमें सिर्फ इसलिए अयोग्य किया गया है, क्योंकि हमने अपनी कैटेगरी में नेट पास किया है. आगे प्रियंका कहती हैं कि जब हम लोगों से कहा गया कि यूजीसी से जवाब आने के बाद ही इंटरव्यू कराया जायेगा तो पहले क्यों किया जा रहा है? क्यों इंटरव्यू नहीं रोका गया?
क्या है यूजीसी?
यूजीसी (यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन) यानि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग भारत में सभी विश्वविद्यालयों को मान्यता प्रदान करता है. नेट एक राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा है, जिसका आयोजन 2017 तक सीबीएसई द्वारा किया जाता था. 2018 से यह परीक्षा नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (एनटीए) द्वारा कराई जा रही है. यह परीक्षा विश्वविद्यालय में लेक्चरर बनने और जूनियर रिसर्च फेलोशिप प्राप्त करने के लिए आयोजित की जाती है. असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए किसी भी अभ्यर्थी को नेट परीक्षा पास होना अनिवार्य होता है. इसके लिए कोई कैटेगरी मायने नहीं रखती है.
क्या कहता है विश्वविद्यालय प्रशासन?
अनुसूचित जाति- जनजाति के उम्मीदवारों के इस प्रदर्शन के सिलसिले में जब बीएचयू के रजिस्ट्रार नीरज त्रिपाठी से बात करने की कोशिश की गई तो उन्होंने बीएचयू के जनसंपर्क अधिकारी (पीआरओ) से बात करने को कहा. इस बारे में पीआरओ राजेश कुमार का कहना है कि इस मामले में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) से स्पष्टीकरण पाने हेतु फिर से पत्र लिखा गया है. आयोग से स्पष्टीकरण मिलने के बाद ही साक्षात्कार आयोजित किए जाएंगे. इसके अलावा उन्होने और कोई भी जानकारी देने से मना कर दिया.
पिछड़ा वर्ग आयोग ने यूजीसी से की इंटरव्यू रोकने की मांग
शिक्षक नियुक्ति पर सवाल उठाने के साथ ही प्रदर्शनकारी उम्मीदवारों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को ज्ञापन देने के अलावा पिछड़ा वर्ग आयोग, एससी- एसटी आयोग से भी शिकायत की थी. इस शिकायत पर राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग ने संज्ञान लिया है. आयोग ने यूजीसी को पत्र भेजकर जवाब तलब करने के साथ इंटरव्यू रोकने को कहा है.
पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष डॉ. भगवान लाल साहनी ने छात्रों की शिकायत पर यूजीसी को पत्र भेजकर कहा है कि इस मामले में बीएचयू प्रशासन से स्पष्टीकरण मांगा जाए. बीएचयू से यह पूछने को भी कहा है कि आरक्षित वर्ग के छात्रों को किस नियम के तहत इंटरव्यू में नहीं बुलाया गया. इस बारे में विश्वविद्यालय प्रशासन से उस नियम की प्रतिलिपि भी मांगी गई है. आयोग ने यह भी कहा है कि इस संदर्भ में यूजीसी का स्पष्टीकरण मिलने तक इंटरव्यू को तत्काल प्रभाव से रोक दिया जाए.
फिलहाल क्या है स्थिति
एससी-एसटी उम्मीदवारों का कहना है कि यूजीसी से अभी भी इस बारे में कोई जवाब नहीं आया है. इधर, विश्वविद्यालय प्रशासन अगले एक-दो दिनों में फिर से इंटरव्यू आयोजित करने जा रहा है.