नया क़ानून बनाकर मजदूरों को गुलामी की ओर धकेल रही मोदी सरकार: नए लेबर कोड बिल के ख़िलाफ़ केंद्रीय ट्रेड यूनियन संगठनों ने किया धरना प्रदर्शन
“मोदी सरकार 'वेतन संहिता विधेयक' और 'कार्यस्थल पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थिति संहिता विधेयक लाकर मजदूरों के अधिकारों पर हमला कर रही है.”

मोदी सरकार के नए लेबर कोड बिल के ख़िलाफ़ देशभर के मजदूरों और ट्रेड यूनियनों ने आज (2 अगस्त) को जंतर-मंतर पर धरना प्रदर्शन किया. इस प्रदर्शन में भवन निर्माण, परिवहन, घरेलू कार्य, स्वच्छता सहित विभिन्न क्षेत्रों के श्रमिकों ने भाग लिया. उन्होंने 44 श्रम कानूनों को खत्म न करने की मांग करते हुए उसे अधिक मजबूत बनाने पर जोर दिया.
बता दें कि केंद्र सरकार ‘वेतन संहिता विधेयक’ और ‘कार्यस्थल पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थिति संहिता विधेयक’ ला रही है. जिसे मजदूर संगठन अपने अधिकारों पर हमला मान रहे हैं.
संसद से ‘वेतन संहिता विधेयक’ पास होने के बाद 4 श्रम कानून- न्यूनतम वेतन अधिनियम, 1948, समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976, बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 और वेतन का भुगतान अधिनियम, 1936 खत्म हो जाएंगे.
वहीं ‘कार्यस्थल पर सुरक्षा, स्वास्थ्य और कार्यस्थिति संहिता विधेयक’ कुल मिलाकर 13 श्रम कानून खत्म कर देगा, जो कि निम्नलिखित हैं-
कारखाना अधिनियम, 1948
माइंस एक्ट, 1952
डॉक वर्कर्स एक्ट, 1986
बिलडिंग एंड अदर कंस्ट्रक्शन वर्कर्स एक्ट, 1996
प्लांटेशन्स लेबर एक्ट, 1951
अनुबंध श्रम अधिनियम, 1970
इंटर-स्टेट माइग्रेंट वर्कमैन एक्ट, 1979
वर्किंग जर्नलिस्ट एंड अदर न्यूज़पेपर एम्प्लॉई एक्ट, 1955
वर्किंग जर्नलिस्ट एक्ट, 1958
मोटर ट्रांसपोर्ट वर्कर्स एक्ट, 1961
सेल्स प्रमोशन एम्प्लॉई एक्ट, 1976
बीड़ी एंड सिगार वर्कर्स एक्ट, 1966
सिने वर्कर्स एंड सिनेमा थिएटर वर्कर्स एक्ट, 1981
प्रदर्शनकारियों की माने तो संसद से बिल पास होने पर करोड़ो मजदूरों की ज़िंदगी प्रभावित होगी. इस संहिता में मौजूद प्रस्ताव, ‘अपरेंटिस’ श्रेणी कामगारों को श्रम कानूनों के दायरे से बाहर कर देगा. निर्माण क्षेत्र में काम करने वाले मजदूरों के लिए बने कल्याणकारी कानूनों भी खत्म हो जाएंगे. नए बिल कानून का रूप लेने के बाद मजदूरों को गुलामी की ओर धकेल देंगे.

बता दें मोदी सरकार ने साल 2014 में सत्ता में आने के बाद श्रम कानूनों में अभी तक का सबसे बड़ा बदलाव करने की घोषणा की थी. सरकार कुल 44 श्रम कानूनों को पूरी तरह से हटाकर उसके बदले सिर्फ 4 श्रम संहिताओं (लेबर कोड) को स्थापित करना चाहती थी. लेकिन मजदूर वर्ग के कड़े विरोध के बाद सरकार लेबर कोड लागू नहीं कर पाई थी. लेकिन 2019 में दोबारा सत्ता में आने के बाद सरकार लेबर कोड लाने की तैयारी में है.
ये 4 श्रम संहिताएं (लेबर कोड) मजदूरी, औद्योगिक संबंध, सामाजिक सुरक्षा और व्यावसायिक सुरक्षा को लेकर हैः
- मजदूरी संहिता– धारा (6 और 17) के अनुसार मजदूरों-कर्मचारियों को घंटे व दिन के हिसाब से काम पर रखा जाएगा और मजदूरी दी जा सकेगी. धारा-13 के तहत 8 घंटे काम करने का प्रावधान हट जाएगा और सरकार तय करेगी कि कार्य दिवस कितने घंटे का होगा, जो 8 घंटे से ज्यादा भी हो सकते हैं. धारा- 19 (5) जिसके तहत 15 साल से कम उम्र के बच्चों को भी काम पर रखना कानूनी हो जाएगा.
- सामाजिक सुरक्षा संहिता– इसके तहत सभी 36 राज्य निर्माण मजदूर वेलफेयर बोर्ड बद कर दिए जाएंगे. जिससे 4 करोड़ निर्माण मजदूरों का निबंधन खारिज हो जाएगा और उनको व उनके परिवारों को मिलने वाली तमाम सुविधाएं जैसे- पेंशन, बच्चों को स्कॉलरशिप इत्यादि बंद हो जाएंगी. इसके अलावा धारा- 20 (3) के तहत असंगठित क्षेत्र के सभी मजदूरों को अपनी मजदूरी का 12.5 प्रतिशत हिस्सा सरकार के सामाजिक सुरक्षा फंड में जमा करना अनिवार्य होगा.
- व्यावसायिक सुरक्षा संहिता– धारा- 42 के अनुसार मालिक महिला मजदूरों से शाम 7 बजे के बाद और सुबह 6 बजे तक काम करवा सकेंगे. जिसे मजदूर महिलाओं की सुरक्षा पर सीधा हमला मान रहे हैं.
- औद्योगिक संबंध संहिता– धारा- 5 के तहत औद्योगिक विवाद अधिनियम, फैक्ट्री ऐक्ट और ट्रेड यूनियन ऐक्ट में भारी बदलाव किए गाए हैं. धारा- 103 के अंतर्गत अवैध हड़ताल करने पर मजदूरों पर लगने वाली दंड राशि 50-1000 रुपए से बढ़ाकर 50 हजार से 2 लाख तक कर दिया जाएगा. जिसे न चुकाने पर जेल की सजा हो सकती है. धारा- 27 के तहत असंगठित क्षेत्र के यूनियन में श्रमिकों के अलावा अधिकतम 2 बाहरी व्यक्ति भी पदाधिकारी बन सकेंगे. 300 से कम मजदूरों वाले कारखानों में हायर और फायर प्रणाली लागू हो जाएगी.
इन सभी संहिताओं को मजूदर वर्ग अपने अधिकारों पर घातक हमला बता रहे हैं. मजदूर वर्ग का सवाल है कि इस तरह की मजदूर विरोधी संहिताओं को क्यों लागू किया जा रहा है? विरोध प्रदर्शन कर रहे लोगों ने मोदी सरकार को राष्ट्र विरोधी करार दिया है. उन्होंने कहा कि मोदी सरकार मजदूर, जनता और किसान विरोधी है.
सीआईटीयू की राष्ट्रीय सचिव सिंधू ने कहा कि सरकार हमारे जनवादी अधिकार छिन रही है. उन्होंने कहा, “मोदी सरकार श्रम कानून के भीतर छेड़खानी नहीं कर रही है बल्कि श्रम कानूनों का कत्ल कर रही है. जिसके ख़िलाफ़ हम प्रदर्शन कर रहे हैं. हमने आजतक मजदूरों और उनके परिवारों के हक के लिए जो कुछ लड़कर हासिल किया है ये सरकार एक झटके में उसे खत्म करना चाहती है. सरकार ने सत्ता में वापसी करते ही श्रम कानून को खत्म करने की साजिश की है. उसे टुकड़ों में बांट दिया है.”

AIUTUC के राष्ट्रीय सचिव आर.के शर्मा ने आरोप लगाते हुए कहा, “इस देश में आजतक पीएम मोदी जैसा झूठा प्रधानमंत्री नहीं आया है. प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि ये देश नहीं बिकने दूंगा, ये देश नहीं झुकने दूंगा लेकिन यह खुद देश को बेच रहे हैं. जनता और मजदूरों के देश को पीएम मोदी रोज निजी और पूंजीपतियों के हाथों में बेचने का काम कर रहे हैं.”
उन्होंने कहा, “आज देश का मजदूर और श्रमिक मर रहा है, किसान आत्महत्या कर रहा है, नौजवान बेरोज़गार है. लेकिन सरकार पूंजीवादी व्यवस्था को बढ़ावा देने में लगी है. सरकार हर संस्थान को खरीदना चाहती है. हिटलर पीएम मोदी का आर्दश है. सरकार ने मजदूर के काम, न्यूनतम वेतन और उसके श्रम अधिकारों पर हमला किया है. लेकिन मजूदर इसके ख़िलाफ़ आवाज उठाते रहेंगे.”

विरोध में शामिल 35 वर्षीय शकिल कहते हैं, “मोदी सरकार जब से सत्ता में आई है जन विरोधी नीतियां लागू की है. संगठित और असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के ऊपर आर्थिक और सामाजिक रूप से हमला हो रहा है.” उनके अनुसार, “सरकार हिंदू-मुसलमान के एजेंडा को फैलाकर सत्ता में आई है और चुनावी मुद्दों से जनता का ध्यान भटका दिया. सरकार रिलाइंस जैसे कॉपोरेट घरानों से पैसा लेकर रेडी-पट्टी मजदूरों का शोषण कर रही है.”
उन्होंने कहा, “श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा के लिए 44 श्रम कानून बने हुए हैं लेकिन सराकर 4 कोड में कानूनों को लाकर अन्य कानून खत्म कर रही है. इससे मजदूरों की क्या सुरक्षा होगी.”
प्रदर्शन में शामिल लता ने बताया कि दरियागंज बुक बाजार जो पिछले 40 सालों से एक ही जगह पर लगाया जा है. लेकिन 2 हफ्तों से उस बाजार को यह बोलकर हटा दिया गया कि आपको दूसरी जगह बैठाया जाएगा. दूसरी जगह के लिए हम रोज किसी नेता या एमसीडी ऑफिसों के चक्कर लगा रहे हैं. बुक बाजार के कम-से-कम 250 परिवार इस समस्या से पीड़ित हैं. हम इंसाफ के लिए दर-दर की ठोकरें खा रहे हैं लेकिन सरकार हमें न्याय नहीं दे रही है.