इस समय डर कर चुप बैठने वाले ही हैं असली देशद्रोही: पूर्व IAS कन्नन गोपीनाथन, देखें विडियो
हर 40 साल में यह देश नौजवानों की कुर्बानी मांगता है. CAA, NRC और NPR भी यही कुर्बानी मांग रहा है.

जम्मू-कश्मीर में सरकार की दमनकारी नीति के ख़िलाफ़ विरोध दर्शाते हुए आईएएस से इस्तीफ़ा देने वाले कन्नन गोपीनाथन नागरिकता संशोधन क़ानून, एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ भी लोगों को जागरूक कर रहे हैं. देश के अलग-अलग हिस्सों में जाकर ये लोगों को सरकार के इन फ़ैसलों की कमियां बता रहे हैं. उनके मुताबिक इस समय सबकुछ ग़लत होते हुए भी देखकर भी जो चुप बैठा है वो ही इस देश का देशद्रोही है. प्रस्तुत है कन्नन गोपीनाथन के हालिया एक भाषण का अंश. यह वीडियो यूट्यूब चैनल राइजिंग राहुल के सौजन्य से है:
1 नंबर की बेवकूफ़ सरकार है. जैसे सड़क पर वो कुत्ते होते हैं ना जो गाड़ी जाते सोचते हैं कि कार के पीछे भागना है और भौंकते भौंकते भागता है. फिर जब गाड़ी तक पहुंचता है तो उसे पता नहीं होता है कि करना क्या है. लेकिन, पहुंचता जरूर है. पहले पूछा आपलोगों से कि कालाधन मिटाना चाहिए कि नहीं? आप सबने बोला हाँ. क्या लेकर आया- नोटबंदी. नोटबंदी लेकर आने के बाद क्या हुआ. हमसे बोला कि कालाधन वापस आया, लेकिन सौ फीसदी से ज्यादा पैसा वापस आ गया. कुछ तो नक़ली नोट भी आरबीआई के पास वापस आ गया. उसके बाद दूसरा बात बोला कि डिजिटल इकोनॉमी बनाएंगे. जितना पैसा था पहले उससे ज्यादा कैश वापस आ गई.
तीसरी बात उन्होंने कहा कि नक़ली नोट बंद करेंगे. अभी कुछ दिन पहले आरबीआई का एक नोटिस था. आरबीआई ने कहा कि 2000 का नया नोट उन्होंने छापना बंद कर दिया है क्योंकि नक़ली नोट अच्छी क्वालिटी की आने लग गई है. तो कौन सी चीज है जो उन्होंने बोला था. और जब एलेक्शन के दौरान आपसे आकर पूछे कि कालाधन मिटाना चाहिए कि नहीं जैसे अभी पूछ रहे हैं कि घुसपैठिये को निकालना चाहिए कि नहीं. और सब हां कह रहे हैं. किसी को समझ में नहीं आता कि हम अपने पैर पर ही कुल्हाड़ी मार रहे हैं. क्योंकि जैसे हमें लगता था कि कालाधन स्वीट्जरलैंड में रखा गया पैसा है तब तो नोटबंदी वहीं करना चाहिए था ना. हमें समझ में नहीं आता कि ऑटो वाला 100 रुपया देता है किसी को और नहीं बताता इस पैसे के बारे में तो यह भी कालाधन है.
घर की मां अगर पैसा इकट्ठा करके 1 लाख रुपया जुटाती है तो वो भी कालाधन है. अगर कोई दुकानदार या रेड़ी वाला कोई भी इस तरह से कमाता है तो वो भी कालाधन है, क्योंकि कालाधन दो तरीके का था. एक अवैध तरीके से कमाया हुआ और दूसरा है अनडॉक्यूमेंटेड. इंडिया में जो इन्फॉर्मल इकोनॉमी है करीब 85 से 90 प्रतिशत वो अनडॉक्यूमेंटेड है. जो लोग ये सवाल पूछते हैं और आप बिना सोचे समझे हाँ बोलते हैं तो आप अपने ही पैर पर कुल्हाड़ी मार रहे होते हैं.
नोटबंदी में परेशान कौन हुए? तीन महीने तक किसके पास पैसा नहीं था? आम जनता के पास. आम जनता परेशान हुई और फिर इसके बाद अर्थव्यवस्था इस हालत में आई है तो उसका कारण भी वही है. उसका कारण भी नोटबंदी है. इसी कारण से जब आपसे घुसपैठिए के बारे में पूछता है तो मैं कम से कम 30 से 40 शहर में जा चुका हूँ और इस पर बात करता हूँ, कहीं भी जाकर पूछता हूं कि घुसपैठिए को निकालना चाहिए कि नहीं तो सब खुलकर बोलते हैं कि हाँ. और उसके बाद आगे पूछता हूँ कि घुसपैठिए हैं कौन? और सरकार कैसे तय करेगी कि कौन घुसपैठिए हैं और कौन नहीं. तब वो सोचने लग जाते हैं. सरकार के पास एक ही तरीका होता है.
अगर मैं जिंदा हूँ तो मुझे ये साबित करने के लिए भी सर्टिफिकेट देना है. मैं जाऊंगा अगर ऑफिस में और बोलूंगा कि मैं जिंदा हूँ मुझे पेंशन दे दो तो वो बोलेगा कि नहीं तुम सर्टिफिकेट लेकर आओ. और ये सर्टिफिकेट मैं इस साल का लेकर आऊं और पिछला साल का नहीं दिया. तब भी कहेगा कि पिछले साल का लेकर आओ तभी मानेंगे कि तुम इस साल जिंदा हो. क्योंकि डॉक्यूमेंट के अलावा सरकार कुछ नहीं जानता. तो घुसपैठिए मतलब- जिनके पास डॉक्यूमेंट नहीं हैं. जिसके पास किसी भी तरीके का डॉक्यूमेंट नहीं है.
अगर यही सवाल दोबारा पूछा जाए कि ऐसे लोग जिनके पास डॉक्यूमेंट नहीं हैं उनको बाहर फेंक देना चाहिए कि नहीं तब आपका उत्तर थोड़ा बहुत बदलने लग जाता है. किनके पास नहीं होता है डॉक्यूमेंट? ग़रीबों के पास नहीं होती, आदिवासी के पास नहीं होती, जो महिलाएं शादी करके कहीं दूसरे गांव में जाती हैं उनके पास नहीं होती. जिनके गांव में बाढ़ आती है उनके पास नहीं होती. जो प्रवासी मजदूर हैं और दिल्ली-मुम्बई जाकर झुग्गियों में रहते हैं और वहां पर आग लग जाती है तो कई बार उनके पास डॉक्यूमेंट नहीं होती.
अरे हमने असम में एनआरसी करने के बाद सीखा कि किनके पास डॉक्यूमेंट नहीं होती. जब असमें में करने के बाद उनको समझ में आया कि इससे कुछ राजनीतिक लाभ वाला रिजल्ट नहीं आया तो 1600 करोड़ खर्च करने के बाद क्योंकि रिजल्ट अपने लाभ वाला नहीं था तो उन्होंने बोला कि इसे फिर से करेंगे. ये 1600 करोड़ रुपया किसका था? जो रंजन गोगोई हैं उनके पेंशन से लेना चाहिए ये पैसा मुझे लगता है. इतना पैसा खर्च क्यों किए? ये हजार करोड़ अगर बीएसएफ जवान को दे दिए होते तो उससे अच्छा से काम हो जाता.
जब आप नफ़रत से काम करते हैं तो आपका सोच भी गंदा हो जाता है क्योंकि आप एक नफ़रत के तौर पर काम करते हैं. नफ़रत से किसी का भला नहीं हो सकता. कम से कम मुसलमानों को तो इस सरकार का धन्यवाद देना चाहिए क्योंकि आपसे तो ये सच बोलते हैं. हिन्दुओं को तो झूठ बोलता है. मुसलमानों को तो खुलेआम बोलता है कि आप डॉक्यमेंट दो. तब मुसलमान डॉक्यूमेंट बनाना शुरू कर दिया. हिन्दुओं को बोलता है कि तुम टारगेट हो ही नहीं. तो बाद में पता लगता है कि 19 लाख में 13-14 लाख लोग हिन्दू निकले क्योंकि उनको बेवकूफ बना दिया. यही चल रहा है आज भी. वो नागरिकता संशोधन क़ानून लेकर आया कि जो चीज असम में किया वो पूरा देश में करना चाह रहा है और इस तरह करना चाह रहा है कि राजनीतिक फ़ायदे वाला रिजल्ट आए. जब तक ये रिजल्ट नहीं आता तब तक ये करते रहेंगे.
और उसमें ये बता रहे हैं कि अगर उसमें आपके पास डॉक्यूमेंट नहीं है तो पहले तो आपको ये प्रूव करना होगा कि आप अवैध प्रवासी हैं. मान लीजिए आज हम सबलोग नागरिक हैं बाद में मैं प्रूव करूँगा कि मैं अवैध प्रवासी हूँ. उसके बाद मैं ये प्रूव करूंगा कि मैं पाकिस्तान, अफगानिस्तान या बांग्लादेश से आया हूँ. उसके बाद मैं शरणार्थी बनूंगा और शरणार्थी बनने के बाद सरकारी दफ्तर में लाइन में खड़ा रहूँगा नागरिकता वापस पाने के लिए. मैं आज नागरिक हूं. पहले हिन्दुओं को अवैध प्रवासी बनाएगा फिर शरणार्थी बनाएगा फिर नागरिकता के लिए अप्लाई करने के बाद मुझे नागरिकता मिलेगा.
किसको बेवकूफ बनाना चाहते हैं ये? इन्हें इतना पता है कि हमारा देश ऐसा है कि अगर बिजली चली जाती है तो किसी को गुस्सा नहीं आता. बिजली जाती है तो सब बैठे रहेंगे ऐसे ही. लोग बगल वाले घर में देख लेते हैं कि वहां गई है या नहीं. अगर उसका भी गया है तो ठीक है. सारे मुहल्ले का मुद्दा है ठीक है. नोटबंदी में भी यही हुआ. मैं खड़ा हूँ तो क्या वो भी तो खड़ा है. हम सब खड़े हैं इसलिए कोई दिक्कत नहीं है. ये सब करने के बाद भी अगर 6 घंटे के बाद बिजली वापस आती है तो हम सबको खुशी जरूर होती है. अगर किसी कॉलेज के हॉस्टल में देखेंगे तो वहां भी जश्न मना रहे होते हैं लोग. एकदम खुशी से पागल हो जाते हैं कि बिजली वापस आ गई. जो जाना नहीं चाहिए था वो चला गया तो आपको गुस्सा नहीं आया. पर जब वापस मिला तो आपको खुशी मिली. इसी मनोविज्ञान का इस्तेमाल कर रहे हैं ये लोग.
नागरिकता जब आपसे छीन लिया जाएगा आपको गुस्सा नहीं होगा. जब एहसान करके वापस नागरिकता दिया जाएगा तो आपको लगेगा कि ये सरकार हमको नागरिकता तो दे दी और कितनी अच्छी सरकार है. उसको ये समझ में नहीं आता है कि वो नागरिक था और 3-4 साल बर्बाद हुए उसके. उसके बाद भीख मांग के उसको नागरिकता मिली. ये क्लैरिटी जो है ये समझाना भी नहीं चाहता. सबको बेवकूफ बनाना चाहता है. अगर कोई इसपर सवाल पूछता है तो बना दिया जाता है कि वो देशद्रोही है. आप आतंकवादी हैं, आप टुकड़े-टुकड़े गैंग हैं. मैं एक सिम्पल सा उदाहरण देना चाहता हूँ कि सवाल क्यों पूछना चाहिए. मेरे मीडिया के साथी है वो भी अब सवाल पूछना बंद कर दिया है. अगर हम एक सामियाना बनाते हैं घर पर बेटे या बेटी की शादी में. उसके बाद हम बांस को मिट्टी में गाड़ते हैं. तो बांस गाड़ने के बाद सबसे पहले हम क्या करते हैं? उसको जोर से हिलाकर देखते हैं कि वो मजबूत है कि नहीं. हम सामियाना को गिराना नहीं चाहते हैं.
एक लोकतंत्र में सवाल उठाना भी वैसा ही है. हम सवाल इसलिए नहीं पूछते हैं कि सरकार को गिराना चाहते हैं. हम सवाल इसलिए पूछते हैं कि सरकार का निर्णय मजबूत है कि नहीं ये समझना चाहते हैं. क्योंकि जिस तरह से बेवकूफी से निर्णय लिए जा रहे हैं. सिर्फ निर्णय लेने के लिए निर्णय लिए जा रहे हैं. 70 साल से कुछ नहीं हुआ इसलिए यहां से हम एक ऐतिहासिक निर्णय लेंगे और उसी हफ़्ते में हम उस ऐतिहासिक निर्णय को दूसरे ऐतिहासिक निर्णय से वापस लेंगे और बोलेंगे कि हमने दो ऐतिहासिक निर्णय लिया. इस तरीके से जो निर्णय लेते हैं अपने समर्थकों को खुश करने के लिए, उसके कारण देश को बहुत ज्यादा नुक़सान हो रहा है. ये समझना जरूरी है. और ये सिर्फ मेरी नहीं मेरे जैसे कई सारे. मेरे बाद एक और आईएएस ऑफिसर ने रिजाइन किया उनको भी ये चीज समझ में आया.
कई लोगों को समझ में आ रहा है कि देश इस हालत में आ गया है कि बाहर आकर लड़ना जरूरी है. अगर आप नहीं लड़िएगा तो मुझे लगता है हम खो बैठेंगे. हम इस देश को खो बैठेंगे. मेरे मां-बाप ने मुझे जो देश दिया है मेरा फ़र्ज बनता है कि ऐसा ही देश मैं अपने बेटे को दूँ. मेरा फ़र्ज बनता है ये. चाहे इमरजेंसी हो या आज़ादी की लड़ाई. हर 40 साल में ये देश अपने नौजवानों से कुर्बानी मांगता है. मैंने ये देखा है. 1940 में लोगों ने कुर्बानी दी. अगर 1970 में दिए. तो आज हम सबको फिर से ये मौका मिला है कि हम साबित करें कि देश को कितना चाहते हैं. और मुझे पूरा यकीन है कि सिर्फ एनआरसी और एनपीआर नहीं. एनआरसी और एनपीआर तो सिर्फ शुरुआत है. एनपीआर में ये करना क्या चाहते हैं, 130 करोड़ में से 120 करोड़ को बोलेंगे कि आप सिटीजन हैं. तो क्या होगा? आपमें से ज्यादातर लोग नागरिक बन जाएगा. फिर ये लड़ाई सिर्फ 10 करोड़ लोगों की रह जाएगी. ये नीति है बांटने की. ज्यादातर लोगों को पहले छांट दो ताकि लड़ाई कम लोगों की हो जाएगी. फिर 10 करोड़ को घटा कर 5 करोड़ करो. 5 करोड़ से 2 करोड़ हो जाएगी. उसके बाद भी 1 करोड़ लोगों को नागरिकता दे दिया फिर बचे हुए 1 करोड़ का आप क्या करेंगे?
ये वही बात हो गई जो कुत्ता भौंकता है गाड़ी के पीछे. वहां तक पहुंच गए फिर आपको पता नहीं है कि करना क्या है. कोई बता भी नहीं रहा है कि आपको करना क्या है. इसीलिए मुझे लगता है कि इस सरकार से सवाल पूछना, इनसे लड़ना, आपको समझाना जरूरी है. जो इस सरकार को सपोर्ट करते हैं, मैं उनको देशभक्त मानता हूँ. जिनको लगता है कि ये सरकार देश के लिए सही कर रहा है उनको मैं देशभक्त मानता हूँ. जिनको लगता है कि सरकार जो कर रही है वो देश के ख़िलाफ़ है, और खड़े होकर बोलने का हिम्मत रख रहे हैं, उसको भी मैं देशभक्त मानता हूँ. पर जिन लोगों को लगता है कि ये देश सही दिशा में नहीं जा रहा है पर चुप बैठने का निर्णय लिया है, बस वही है इस देश का देशद्रोही. जिनको पता है कि देश इस तरह से आगे जा रहा है जो हमारे बच्चों या हमारे लिए सही नहीं है फिर भी खुद को या खुद के परिवार को या अपनी पार्टी को देश के ऊपर रखकर चुप बैठकर निर्णय ले रहा है, वही लोग देशद्रोही है. मेरा इनसे इतना ही रिक्वेस्ट है कि आप चुप हैं मतलब आप इस देश के विलेन हैं. आवाज़ उठाइए और हीरो बनिए.