गुरु नानक जी का 550वां प्रकाश पर्व और उनके गीतों का साथी “रबाब”
कबीरदास, रविदास और नामदेव जैसे संत कवि भी रबाब नामक इस वाद्य यंत्र का इस्तेमाल करते थे.

सिख धार्मिक संगीत में रबाब का बहुत महत्व है. यह वीणा की आकृति का एक वाद्य-यंत्र है. रबाब उन यंत्रों में शामिल है, जिसका इस्तेमाल गुरु नानक देव जी और सिख संगीत के रबाबी परंपरा में होता रहा है. गुरु नानक जी के गीतों की धुन पर उनके साथ यात्रा करने वाले भाई मरदाना अक्सर रबाब बजाया करते थे. भाई मरदाना मिरासी समुदाय से ताल्लुक रखते थे. मिरासी समुदाय में मूलत: मुस्लिम समाज के भाट कवियों को रखा जाता है. मशहूर वीणावादक और शास्त्रीय संगीत के गायक भाई बलदीप सिंह रबाबी परंपरा की शुरुआत के बारे में बताते हैं:
जब गुरुनानक जी अपने संन्यास के चरण में प्रवेश कर रहे थे तब उन्होंने भाई मरदाना को कहा कि मशहूर रबाबी फिरंदा से उनके लिए एक रबाब लेकर आएं. फिरंदा को जैसे ही मालूम चला कि रबाब को गुरु नानक जी ने मंगवाया है, उसने पैसे लेने से साफ इनकार कर दिया और भाई मरदाना से विनती की कि उसकी मुलाकात गुरु नानक जी से करा दी जाए. गुरुनानक जी के प्रति फिरांदा की श्रद्धा इस बात से पता चलती है कि वह अपने गांव भारो-अना से पैदल ही गुरु नानक जी से मिलने चला आया और उनके पैरों पर रबाब भेंट किया. कहा जाता है कि फिरंदा रबाब गुरुनानक जी और भाई मरदाना के साथ उनकी हर यात्रा के दौरान मौजूद रहा.
रबाबी परंपरा गुरुवाणी संगीत का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है और इसे उचित सम्मान भी मिलता रहा है, लेकिन 19वीं सदी के बाद से यह परंपरा लगभग समाप्त होती गई. कबीरदास, नामदेव, रविदास और गुरु नानक जैसे कई संतों ने कभी रबाब बजाए थे. भाई बलदीप सिंह ने अपने जीवन का एक लक्ष्य बना लिया है कि गुरु नानक जी के जीवन-काल में जिन-जिन वाद्य-यंत्रों का इस्तेमाल किया गया था, वे उन्हें फिर से जीवित करेंगे. इसी क्रम में भाई बलदीप सिंह गुरवाणी कीर्तन में फिर से रबाब का इस्तेमाल करना शुरू कर रहे हैं. भाई बलदीप सिंह गौरवशाली गुरसिख परंपरा से ताल्लुक रखते हैं और महान सिख गुरुओं के समय संगीत से जुड़े रागियों के 13वीं पीढ़ी के वंशज हैं.
भाई बलदीप सिंह बताते हैं कि उनका मिशन इस तरह का है जैसे किसी छिपे हुए ज्ञान के लिए अपने दिवंगत पुरखों से बात की जाए. कारवां-ए-मोहब्बत के साथ अपने साक्षात्कार में उन्होंने कहा- “मैं हर एक क़ब्र पर गया..और आवाज़ लगाई- “हे मेरे बुजुर्गों आप मुझे कुछ बताएंगे? आप अपने ज्ञान में से कुछ हिस्सा मेरी झोली में डालेंगे? वे अपने ज्ञान में से कुछ हिस्सा मुझे देते और मैं इसी में खुश हो जाता.’ वीणावादक ज्ञानी हरभजन सिंह के निर्देश पर भाई बलदीप सिंह खुद अपने हाथों से ही रबाब निर्माण का काम करते हैं. यह एक जटिल प्रक्रिया है. रबाब बनाने के लिए पहले सही लकड़ी का चुनाव करना होता है फिर उन लकड़ियों को ध्यानपूर्वक बराबर साइज से काटा जाता है. इसके बाद उन्हें इस तरह बनाया जाता है ताकि बेहतर आवाज़ दे सकें.
गुरु नानक जी के 550वें प्रकाश पर्व पर भाई बलदीप सिंह उन्हें एक खास रबाब भेंट करना चाहते हैं. रबाब ने भारतीय संगीत के साथ-साथ मध्य एशिया के संगीत में भी अपनी पहचान स्थापित की है. रबाबी परंपरा में भारतीय-ईरानी और अरबी परंपरा का सम्मिश्रण है. भाई बलदीप सिंह कहते हैं- “जब हम अपनी सभ्यता को खोजें तो वो ना किसी एक धागे में मिलेगी ना एक रंग में.”
यह लेख शलीम एम हुसैन द्वारा अंग्रेजी में लिखा गया है. इसका हिन्दी अनुवाद अभिनव प्रकाश ने किया है.