EXCLUSIVE: छात्र खिलाफ़ी प्रशासन? JNU प्रशासन ने बेवजह रोक रखा है छात्रों के डिग्री-सर्टिफ़िकेट, नौकरी और स्कॉलरशिप से वंचित हो रहे हैं छात्र
हालांकि एबीवीपी के नेता और जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व सचिव सौरभ शर्मा को उनका थिसिस जमा होने के एक महीने भीतर ही उनकी पीएचडी मिल गई.

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के सेंटर फॉर स्टडी ऑफ लॉ एंड गवर्नेंस में पीएचडी की छात्रा शुचि भारती ने जुलाई 2018 में अपना थिसिस जमा किया था, लेकिन उनके तमाम अनुरोध के बावजूद भी विश्वविद्यालय प्रशासन ने अब तक उनका साक्षात्कार नहीं लिया है. शुचि की तरह ही इस सेंटर के छह अन्य छात्र भी अपने साक्षात्कार के तिथि की घोषणा का इंतजार कर रहे हैं.
छात्रों द्वारा थिसिस जमा करने के बाद प्रशासन उन्हें बाहरी परीक्षकों के पास भेजता है, जिसमें सामान्य तौर पर छह महीने का समय लगता है, इसके बाद साक्षात्कार के तिथि की घोषणा की जाती है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में कई छात्रों ने 2017 में ही अपना थिसिस जमा किया था, लेकिन अभी तक उनके साक्षात्कार की तारीख़ भी नहीं तय हुई है. छात्रों का कहना है कि विश्वविद्यालय प्रशासन टालमटोल करने वाला जवाब देता है और थिसिस, साक्षात्कार और डिग्री से जुड़ा कोई भी डिटेल नहीं बताया जाता है.
शुचि भारती ने न्यूज़सेंट्रल24X7 से बताया, “हम जब भी परीक्षा विभाग के पास जाते हैं, वे हमें भगा देते हैं. हमें नहीं मालूम की अपनी समस्याएं लेकर हम कहां जाएं, किससे अपनी बातें रखें. कुलपति एम. जगदीश कुमार हमसे मुलाकात करने के लिए भी तैयार नहीं हैं.” आगे शुचि ने कहा, “रोज़गार के अवसर ख़त्म हो गए हैं, चीजें आगे नहीं बढ़ रही. मैंने अपना एम.फिल और पीएचडी पूरा करने में छह साल लगाए हैं. अभी तक हमें डिग्री नहीं दी गई है, हमारा सारा प्रयास बेकार ही रहा है. मुझे अच्छी नौकरी नहीं मिल सकती.” भारती ने बताया कि उन्होंने हाल ही में नोएडा के एक प्राइवेट कॉलेज में पढ़ाने की नौकरी छोड़ दी है.
छात्र नेता उमर ख़ालिद ने हाल ही में ट्विटर पर घोषणा की थी कि उनके पीएचडी का साक्षात्कार पूरा हो गया. इस मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने लंबी लड़ाई लड़ी है. जुलाई 2018 में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की एक उच्च स्तरीय जांच कमेटी ने उमर ख़ालिद का थिसिस लेने से इनकार कर दिया था. उनका कहना था कि उमर ख़ालिद के ऊपर राजद्रोह का मुक़दमा दर्ज है, इसलिए ऐसा नहीं हो सकता. इसके बाद उमर ख़ालिद ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रूख किया. बीते साल अगस्त महीने में दिल्ली उच्च न्यायालय ने जेएनयू को निर्देश दिया कि उमर ख़ालिद की थिसिस के बीच पड़ी रूकावटों को दूर किया जाए ताकि वो अपना शोध कार्य संपन्न कर पाएं. अब, उमर ख़ालिद इंतजार कर रहे हैं कि विश्वविद्यालय उन्हें डिग्री कब देता है.
Successfully defended my Ph.D today. Finally, it's Dr. Umar Khalid!
मोदी साहब, हमने तो टैक्सपेयर्स का हिसाब चुकता किया! और आपने?
Special thanks to Dr. Sangeeta Dasgupta, Prof. Prabhu Mahapatra & Prof.Rohan D'Souza, JNU community & all who stood by me in last few tumultuous yrs. pic.twitter.com/ePvFCJapol
— Umar Khalid (@UmarKhalidJNU) May 14, 2019
इन सबके विपरीत दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों को साक्षात्कार की तारीख़ को लेकर कोई समस्या नहीं होती. विश्वविद्यालय में शोध की छात्रा अपर्णा शर्मा* का कहना है, “यह मुख्यरूप से सुपरवाइजर पर निर्भर करता है कि वह कैसे शोध का फॉलोअप ले रहे हैं. इस प्रक्रिया में तीन महीने का समय लगता है. लेकिन, कई बार इसमें देरी भी होती है और इसमें एक साल का समय भी लग जाता है.”
जेएनयू की एक अन्य छात्रा अंतरा मुखर्जी* ने अमेरिका में पढ़ने के लिए फुलब्राइट-नेहरू डॉक्टोरियल फ़ेलोशिप का आवेदन डाला है. हालांकि, उनका आवेदन रद्द होने की पूरी संभावना है, क्योंकि उन्होंने सिर्फ मार्कशीट ही जमा किए हैं, जबकि इसमें वांछित के तौर पर डिग्री सर्टिफिकेट की मूल कॉपी जमा करना था. अंतरा मुखर्जी ने न्यूज़सेंट्रल24X7 से बताया कि उन्होंने 2016 में अपने एम.फिल की थिसिस जमा की थी और इसके 11 महीने बाद उनका डिफ़ेंस कराया गया. अभी अंतरा को मार्कशीट दी गई है, पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने डिग्री सर्टिफिकेट की मूल कॉपी अभी तक नहीं दी है.
अंतरा मुखर्जी का कहना है, “जेएनयू खुद प्रोविजनल सर्टिफिकेट के आधार पर अपने यहां एडमिशन नहीं लेता है. फिर ये लोग कैसे उम्मीद करते हैं कि दूसरे विश्वविद्यालयों में प्रोविजनल सर्टिफिकेट से एडमिशन हो जाएगा? अगर आप कोर्स पूरा करने के 2 साल बाद भी प्रोविजनल सर्टिफिकेट के आधार पर फॉर्म भर रहे हैं, तो इसका मतलब है कि कहीं ना हीं गड़बड़ी है. यूनिवर्सिटी ने अपना काम नहीं किया, इसलिए मेरा यह एक साल बेकार चला जा रहा है.”
विश्वविद्यालय प्रशासन दे रहा प्रिटिंग में समस्या का हवाला
ओरिजनल सर्टिफिकेट ना देने के पीछे का कारण पूछने पर अंतरा मुखर्जी का कहना है कि प्रशासन बेतुका बहाने बना रहा है. प्रशासन का कहना है कि सर्टिफिकेट अब कैम्पस के भीतर प्रिंट नहीं होता. कुछ अन्य छात्रों का भी आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन ने प्रिंटिंग से जुड़ी समस्या का हवाला देते हुए सर्टिफिकेट नहीं दिया है. इसके साथ ही इस डिग्री पर किस अधिकारी का दस्तख़त किया जाए, इसको लेकर भी असमंजस की स्थिति बनी हुई है.
जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष एन.साई बालाजी को भी अभी तक उनकी एम फिल की डिग्री नहीं दी गई है, जबकि उन्होंने बीते साल ही यह कोर्स पूरा कर लिया है. उनका कहना है कि उन्होंने कुलपति को “चोर” कहने के साथ ही आरएसएस और भाजपा विरोधी नारे लगाए थे, इस कारण उनके दस्तावेज़ों को रोका गया है.
बालाजी का कहना है कि परीक्षा नियंता हनुमान शर्मा ने उनके कार्यालय के बाहर सुरक्षाकर्मियों को तैनात कर दिया है, ताकि उनके पास जो छात्र अपना सर्टिफिकेट बनाने की मांग लेकर पहुंचे, उन्हें भगाया जा सके. न्यूज़सेंट्रल24X7 से बालाजी ने बताया, “मौजूदा कुलपति के आने के बाद से विश्वविद्यालय में यह परिवर्तन आया है कि उन्होंने मूल्यांकन कार्यालय को अपनी ज़ागीर समझ ली है, जिसमें सिर्फ आरएसएस और एबीवीपी के करीबी लोगों का ही काम किया जाता है. जबकि दूसरे बच्चे शिकार हो रहे हैं.

इसी प्रकार जेएनयू छात्रसंघ की उपाध्यक्ष सारिका चौधरी ने कहा कि विश्वविद्यालय प्रशासन का व्यवहार शत्रुतापूर्ण हो गया है और जो छात्र स्कॉलरशिप या नौकरी के लिए सर्टिफिकेट की मांग करते हैं, उन्हें सर्टिफिकेट नहीं दी जा रही. सारिका चौधरी ने न्यूज़सेंट्रल24X7 को बताया, “इस प्रक्रिया में समय लगता है. एक बार जब थिसिस जमा किया जाता है, फिर यूनिवर्सिटी उसे बाहरी सुपरवाइजर को भेजती है, जो इसकी जांच करते हैं. मुझे जहां तक याद है 2016 में कुलपति ने घोषणा की थी कि दीक्षांत समारोह के पहले किसी भी छात्र को सर्टिफिकेट नहीं दी जाएगी. ऐसे में जब आपात स्थिति में छात्रों को सर्टिफिकेट की आवश्यकता होती है, तो इस पर ध्यान नहीं दिया जाता. छात्रों को दीक्षांत तक का इंतजार करना पड़ता है. अब विश्वविद्यालय प्रशासन किसी भी तरह के अनुरोध पर विचार नहीं करता. कई ऐसे मामले हैं, जहां छात्र स्कॉलरशिप और अन्य जगहों पर आवेदन करने के लिए सर्टिफिकेट का इंतजार कर रहे हैं.”
जेएनयू में सिनेमा स्टडीज़ विभाग में पढ़ाने वाली प्रोफेसर इरा भास्कर की बातचीत पिछले हफ़्ते हनुमान शर्मा से हुई. अपने एक छात्र के सर्टिफिकेट में हो रही देरी को लेकर इरा भास्कर ने हनुमान शर्मा से सवाल पूछा. इरा भास्कर बताती हैं, “डॉ. शर्मा ने मुझे नहीं बताया कि क्यों सर्टिफिकेट निर्गत नहीं किया गया है. उन्होंने मुझे मूल्यांकन कक्ष के भीतर जाने से भी रोका. मैंने उनसे कहा कि एक शिक्षक के तौर पर यह अपने छात्र के हितों की बात करूं. यह मेरे छात्रों के भविष्य का सवाल है. मेरी उनसे इस तरह की बात हुई, वे मुझ पर भड़के हुए थे. इसके बाद प्रो. इरा भास्कर ने बताया कि पूर्व सेक्शन ऑफिसर के सेवानिवृत हो जाने के बाद उनकी जगह आज भी खाली है. इसलिए दस्तावेज़ों पर किस अधिकारी का दस्तख़त हो इसे लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है.

सभी छात्रों के साथ नहीं है यह समस्या
विश्वविद्यालय प्रशासन का यह रवैया संदेहास्पद लगता है क्योंकि एबीवीपी के नेता और जेएनयू छात्रसंघ के पूर्व सचिव सौरभ शर्मा को उनका थिसिस जमा होने के एक महीने भीतर ही उनकी पीएचडी मिल गई, जबकि शुचि भारती जैसे छात्रों को एक साल से ज्यादा का इंतजार करना पड़ा है. छात्रों का कहना है कि सौरभ शर्मा ने अप्रैल के पहले हफ़्ते में अपना थिसिस जमा किया था और उनका साक्षात्कार 18 अप्रैल को पूरा हो गया, जिसके तुरंत बाद उन्हें डिग्री भी दे दी गई. सौरभ शर्मा जेएनयू में स्कूल ऑफ कम्प्यूटेशनल एंड इंटिग्रेटिव साइंसेज के छात्र रहे हैं.
सौरभ शर्मा के डिग्री प्रकरण में जेएनयू छात्रसंघ ने बयान जारी विश्वविद्यालय प्रशासन को घेरा है. छात्रसंघ अध्यक्ष बालाजी का कहना है, “विश्वविद्यालय प्रशासन ने सौरभ शर्मा की मदद की है, क्योंकि उनके लिए फ़ैकल्टी का पद पहले से ही तैयार रखा गया है. उनके विभाग में ओबीसी कोटे की एक वैकेंसी है, जिस पर विश्वविद्यालय प्रशासन सौरभ शर्मा की बहाली करना चाहता है.”
*पहचान गुप्त रखने के उद्देश्य से नाम परिवर्तित किए गए हैं.
यह रिपोर्ट मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में लिखी गई है. मूल रिपोर्ट को पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.