किसानों को मिले समय पर पानी: जैसलमेर में जलसंकट प्रमुख चुनावी मुद्दा
इस रेतीले ज़िले के मतदाता अपने मौजूदा सांसद सोनाराम से काफी नाराज़ हैं. इसको देखते हुए ही भाजपा ने उनका टिकट काटकर इसबार कैलाश चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया है.

पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह के कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में राजस्थान की जैसलमेर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने को लेकर चर्चा में आए इस क्षेत्र में जल संकट इस बार प्रमुख चुनावी मुद्दा है.
इस रेतीले ज़िले के मतदाता अपने मौजूदा सांसद सोनाराम से काफी नाराज़ हैं. इसको देखते हुए ही भाजपा ने उनका टिकट काटकर इसबार कैलाश चौधरी को अपना उम्मीदवार बनाया है.
बाड़मेर-जैसलमेर संसदीय सीट पर सोमवार को मतदान होना है जहां कांग्रेस ने भी नए उम्मीदवार को मौका दिया है.
कांग्रेस ने पूर्व केंद्रीय मंत्री जसवंत सिंह के बेटे मानवेंद्र सिंह को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है जो पिछले साल अक्टूबर में पार्टी में शामिल हुए थे.
कई मतदाताओं ने कहा कि वे मानवेंद्र सिंह को जानते हैं, चौधरी को नहीं और सोना राम के खराब प्रदर्शन से नाखुश हैं.
स्थानीय कारोबारी पार्थ भाटिया ने पीटीआई-भाषा को बताया कि यहां के लोग अब भी जलापूर्ति की समस्या से जूझ रहे हैं. स्वच्छ भारत के नाम पर भी ज्यादा कुछ नहीं किया गया, फिर भी वह मोदी को पसंद करते हैं.
पेशे से दवा विक्रेता नरेश भाटिया ने कहा, “हमने पहले कभी कैलाश चौधरी का नाम नहीं सुना था, मानवेंद्र पहले भी शहर की सेवा कर चुके हैं. हम उन्हें जानते हैं, लेकिन चौधरी को नहीं.”
उन्होंने कहा कि चुनाव सिंह के लिए भी अपनी अहमियत साबित करने का मौका है.
जीएसटी और नोटबंदी के प्रभाव पर चर्चा करते हुए स्थानीय कारोबारियों ने कहा कि इससे सिर्फ वे लोग प्रभावित हुए जिनके पास छिपाने के लिये कुछ था.
ऋषि राज भाटिया ने कहा कि उन्हें नहीं लगता कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ने कोई गलत कदम उठाया. जो लोग नोटबंदी और जीएसटी की शिकायत कर रहे हैं ये वो लोग हैं जो दूसरी तरफ से रुपये कमा रहे थे.
कई कारोबारियों ने पानी की कमी, बेरोजगारी और गंदी सड़कों जैसी समस्याओं का उल्लेख किया.
ऋषि राज ने कहा, “जलापूर्ति का मुद्दा नया नहीं है. हमारे सामने हमेशा से यह समस्या रही.”
स्थानीय कारोबारी पुरुषोत्तम मालपानी ने कहा कि किसानों को समय पर पानी की आपूर्ति की जरूरत है. यह यहां सबसे बड़ा मुद्दा है. लाखों लोग अस्थायी पदों पर हैं या फिर नौकरी खोज रहे हैं.
मोदी को लेकर सहमति के सुरों के बीच कुछ ऐसे भी लोग थे जिन्होंने सरकार को “गरीब-विरोधी” करार दिया.