जनता के पैसे को अपने प्रचार में उड़ा रही मोदी सरकार, चार साल में विज्ञापन पर खर्च किए 5,000 करोड़ रुपए
कांग्रेस सरकार ने हर साल औसतन 504 करोड़ विज्ञापन पर खर्च किया था। वही, भाजपा सरकार हर साल 1202 करोड़ रुपए खर्च कर रही है।

मोदी सरकार यूं तो देश के लिए कार्य करने के दावे करती है। लेकिन, इसकी असलियत कुछ और ही है। सत्ता में आने के बाद इसने करोड़ों रुपये पानी की तरह विज्ञापनों और पार्टी के प्रचार-प्रसार पर खर्च कर दिया है। मोदी सरकार ने साढ़े चार सालों के अपने कार्यकाल में विज्ञापन पर लगभग 5,000 करोड़ रुपये खर्च कर दिए हैं। यह जानकारी आरटीआई के जरिए सामने आई है।
द वायर की रिपोर्ट के अनुसार तालाब के पुनरूद्धार पर काम करने वाले ग्रेटर नोएडा निवासी रामवीर तंवर ने आरटीआई के जरिए मोदी सरकार द्वारा विज्ञापनों पर खर्च की गई राशि के बारे में जानकारी मांगी थी। रामवीर का कहना है कि सरकार पानी की तरह जनता के पैसे को अपने प्रचार-प्रसार में बहा रही है और जब कभी पर्यावरण के लिए पैसे देने की बात आती है तो प्रशासन कहता है कि हमारे पास पैसे नहीं हैं। उन्होंने कहा, ‘सरकार के पास प्रदूषण से लड़ने के लिए पैसा नहीं हैं लेकिन प्रचार-प्रसार के लिए हैं।
आरटीआई से मिली जानकारी के अनुसार साल 2014-15 में इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में विज्ञापनों पर 470.39 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। वहीं 2015-16 में 541.99, साल 2016-17 में 613.78 करोड़, 2017-18 के साल में 474.76 करोड़ और 2018-19 के मौजूदा साल में अब तक 110.16 करोड़ की राशि विज्ञापनों पर खर्च की जा चुकी है। यह खर्च केवल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया तक ही सीमित नहीं है। बल्कि प्रिंट मीडिया में भी विज्ञापन के लिए 2136.39 करोड़ रुपये की राशि खर्च की गई है।
सरकार ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, आधार और योग जैसी योजनाओं के प्रचार पर भी 649.11 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। इन सब खर्चों में सबसे ज्यादा राशि प्रिंट मीडिया के विज्ञापनों को दी गई है। केवल आधार बनाने वाली संस्था भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीआईए) से जुड़े विज्ञापनों पर 2014 से 2018 तक 3.27 करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री राज्यवर्द्धन राठौड़ ने राज्यसभा में बताया था कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, स्वच्छ भारत अभियान, सांसद आदर्श ग्राम योजना और स्मार्ट सिटी मिशन के विज्ञापनों पर काफी मोटी राशि खर्च की गई है।
ग़ौरतलब है कि एक तरफ़ तो मोदी सरकार केवल विज्ञापनों पर पानी की तरह पैसा बहा रही है। वहीं दूसरी ओर सामाजिक योजनाओं के लिए आवंटित राशि में भारी कटौती कर रही है। केंद्र सरकार द्वारा मैला ढोने वालों के पुनर्वास के लिए आवंटित की जाने वाली राशि को बहुत कम कर दिया है। जहां साल 2013-14 में 570 करोड़ रुपये की राशि का आवंटन किया गया था। वही साल 2017-18 में केवल पांच करोड़ रुपये की राशि आवंटित की गई है।
फैक्टली वेबसाइट की एक रिपोर्ट के मुताबिक यूपीए सरकार ने हर साल औसतन 504 करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च किए थे। जबकि मोदी सरकार ने पिछले चार सालों में औसतन 1202 करोड़ रुपए हर साल खर्च कर किए हैं।