NSC के दो सदस्यों ने सौंपा इस्तीफ़ा, नोटबंदी के बाद रोज़गार से जुड़े आंकड़े जारी करने से रोक रही थी मोदी सरकार
आयोग के सदस्यों का कहना है कि सरकार नोटबंदी के बाद रोज़गार और बेरोज़गारी से जुड़े आंकड़े जारी करने से उन्हें रोक रही थी.

नोटबंदी के बाद रोजगार और बेरोज़गारी से जुड़े आंकड़े पेश करने से सरकार द्वारा रोके जाने पर राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के कार्यकारी अध्यक्ष और एक अन्य सदस्य ने अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया है. 2017-18 में रोज़गार से जुड़े आंकड़ों का प्रकाशन करने से सरकार इन्हें रोक रही थी.
यह रिपोर्ट मोदी सरकार द्वारा पहली बार जारी होना था, जिसमें रोज़गार की वास्तविक स्थिति का अंदाजा लगता. राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग एक स्वायत्त संस्था है, जिसे 2006 में बनाया गया था. इसका काम देश की सांख्यिकी या विकास से जुड़े आंकड़ों का क्रियान्वयन की देखरेख करना है.
जून 2017 में सरकार ने सांख्यिकीविद पी. सी. मोहनन और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स के प्रोफेसर जे.वी मीनाक्षी को राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के सदस्य के तौर पर बहाल किया गया था. इन दोनों को तीन साल का कार्यकाल दिया गया था. पी. सी. मोहनन कार्यवाहक अध्यक्ष थे.
इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में मोहनन ने कहा है, “सामान्य तौर पर ऐसा होता है कि राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय अपनी रिपोर्ट आयोग के पास देता है. आयोग से मंजूरी मिलने के कुछ दिन बाद इसे जारी कर देना होता है. हमने राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय की रिपोर्ट को दिसंबर के शुरुआत में ही मंजूरी दे दी थी, लेकिन दो महीने बीत जाने के बाद भी अभी तक इसका प्रकाशन नहीं किया गया है.”
उन्होंने कहा, “पिछले कुछ समय से देखा जा रहा था कि सरकार राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग को गंभीरता से नहीं ले रही है. महत्वपूर्ण निर्णय लेने में भी सरकार आयोग की अनदेखी करती थी. ऐसे में हम अपनी ड्यूटी करने में असमर्थ थे.”
बिजनेस स्टैंडर्ड की रिपोर्ट के मुताबिक भारत के मुख्य सांख्यिकीविद् और राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के सदस्य प्रवीण श्रीवास्तव का कहना है, “दोनों सदस्यों ने अपने इस्तीफ़े में राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग की कार्यप्रणाली को लेकर चिंताएं व्यक्त की हैं, जबकि उन्होंने आयोग की बैठक में कभी इस तरह की चिंता नहीं जताई थी.”
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के सूत्र के हवाले से इंडियन एक्सप्रेस ने बताया है कि 2017-18 में रोज़गार का आंकड़ा काफी निराशाजनक रही है, जिसके कारण सरकार इसे रोककर रखना चाहती है.
बिजनेस स्टैंडर्ड के मुताबिक श्रम और रोजगार मंत्रालय ने भी 2016-17 के वार्षिक सर्वेक्षण को भी रोके रखा है, जबकि इसे जारी करने की सारी औपचारिकताएं पहले ही पूरी की जा चुकी है.
2013 से 2016 के बीच राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के चेयरमैन रहे प्रणब सेन का कहना है, “राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग का काम राष्ट्रीय सांख्यिकी प्रणाली द्वारा जारी किए गए आंकड़ों को जारी करना है, अगर इस काम में रोक लगाई जाती है तो इसके अध्यक्ष का इस्तीफ़ा देना बिल्कुल जायज है. राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय के रिपोर्टों को जारी करने के लिए राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के अनुमति की जरूरत नहीं होती है.”
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के पूर्व अध्यक्ष आर बी बर्मन का कहना है कि राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग आंकड़ों से जुड़े मामले देखने के लिए सर्वोच्च संस्था है, इसलिए सरकार को इसे पर्याप्त स्वायत्तता देनी चाहिए.
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के एक अन्य पूर्व सदस्य के हवाले से बिजनेस स्टैंडर्ड ने लिखा है कि सरकार ने पिछले साल नवंबर में जीडीपी के आंकड़े जारी करते समय भी राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग को नज़रअंदाज़ किया था.
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय ने इससे पहले 2011-12 में रोज़गार से जुड़े आंकड़े प्रस्तुत किए थे. इसके बाद काफी सोच विचार कर फ़ैसला किया गया कि ये आंकड़े प्रतिवर्ष जारी किए जाएंगे. इसके बाद जून 2018 तक रोज़गार के आंकड़े जारी किए जाने थे. इसमें नोटबंदी से पहले और नोटबंदी के बाद दोनों आंकड़े मौजूद थे.
बता दें कि हाल ही में सीएमआईई ने बताया था कि देश में बेरोज़गारी का आंकड़ा 7.4 प्रतिशत तक बढ़ा है, जो पिछले 15 महीने में सबसे अधिक है. इसके साथ ही नोटबंदी की वज़ह से साल 2018 में करीब 1 करोड़ 11 लाख लोगों को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी थी. लेकिन, सरकार इस रिपोर्ट को ख़ारिज़ करती रही है और उसका कहना है कि उसने अपने कार्यकाल में पर्याप्त रोज़गार के अवसर दिए हैं.